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दिल के अल्फ़ाज़

तेरी खुशियों के खातिर अपने चंद लम्हे हैं कुर्बान किए दूर होता रहा खुद से जैसे मिटता रहा तुझसे फासला याद मुझे अपने टूटे ख्वाबों की आने लगी भूल बैठा सारे गम जो तू मुस्कुराने लगी अपने में ही खोया गुमनाम सा मायूस था रोशन हुआ जो तेरी रोशनी मुझे अपना बनाने लगी वहम जी रहा था क्यूं ख्वाब सजाने लगा छोड़ के गई जो तू तो तनहा बैठा और खुद पे मुस्कुराने लगा सच के पल जैसे मुझे कतरा कतरा जलाने लगे फिर मै पत्थर बन सारी उम्मीदें दफनाने लगा ठोकरों से पता चला कि तनहा था मेरा रास्ता अब तनहाई ही मुझे रास आने लगी खुद की तकलीफें जैसे नासाज नाकाम नजर आने लगीं।         ~     Mao Singh

Shayri & Poetry

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